पीथमपुर के कालेश्वरनाथ मंदिर
पीथमपुर के कालेश्वरनाथ
पीथमपुर के कालेश्वरनाथ मंदिर की दीवार में लगे िशलालेख के अनुसार श्री जगमाल गांगजी ठेकेदार कच्छ कुम्भारीआ ने इस मंदिर का निर्माण कार्तिक सुदि 2, संवत् 1755 (सन् 1698) को गोकुल धनजी मिस्त्री से कराया था। चांपा के पडित छविनाथ द्विवेदी ने सन् 1897 में संस्कृत में ``कलिश्वर महात्म्य स्त्रोत्रम`` लिखकर प्रकािशत कराया था।
इस ग्रंथ में उन्होंने कालेश्वरनाथ का उद्भव चैत्र कृष्ण प्रतिपदा संवत् 1940 (अर्थात सन् 1883 ई.) को होना बताया है
शिव मंदिर हसदेव नदी के तट पर स्थित है जो कि कलेश्वरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि एवं रंग पंचमी त्यौहार के समय 10 दिन का मेला आयोजित किया जाता है।
प्रारम्भ में यहां का मेला फाल्गुन पूर्णिमा से चैत्र पंचमी तक ही लगता था, आगे चलकर मेले का विस्तार हुआ और इंपीरियल गजेटियर के अनुसार 10 दिन तक मेला लगने लगा। इस मेले में नागा साधु इलाहाबाद, बनारस, हरिद्वार, ऋषिकेष, नासिक, उज्जैन, अमरकंटक और नेपाल आदि अनेक स्थानों से आने लगे। उनकी उपस्थिति मेले को जीवंत बना देती थी। मेले में पंचमी के दिन काल कालेश्वर महादेव के बारात की शोभायात्रा निकाली जाती थी। कदाचित् िशव बारात के इस शोभायात्रा को देखकर ही तुलसी के जन्मांध कवि श्री नरसिंहदास ने उिड़या में िशवायन लिखा। िशवायन के अंत में छत्तीसगढ़ी में िशव बारात की कल्पना को साकार किया है।
खरौद के मठ के महंत गिरि गोस्वामी थे, उसी प्रकार पीथमपुर के इस शैव मठ के महंत भी गिरि गोस्वामी थे।
। स्वामी दयानन्द भारतीे जी को पीथमपुर मठ की व्यवस्था के लिए तिलभांडेश्वर मठ काशी के महंत स्वामी अच्युतानन्द जी महाराज ने 20.02.1953 को भेजा था। स्वामी गिरिजानन्दजी महाराज पीथमपुर मठ के आठवें महंत हुए। उन्होंने ही चांपा को मुख्यालय बनाकर चांपा में एक `सनातन धर्म संस्कृत पाठशाला` की स्थापना सन् 1923 में की थी|
स्थान
जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर जिला मुख्यालय से 11 कि. मी. और दक्षिण पूर्वी मध्य रेल्वे के चांपा जंक्शन से मात्र 8 कि. मी. की दूरी पर हसदेव नदी के दक्षिणी तट पर है
बहरी कड़ी
http://www.onefivenine.com/india/villages/Janjgir_1aChampa/Nawagarh/Pithampur
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें